हम होलिका दहन क्यों करते है ? जानिए


                              हम होलिका दहन क्यों करते है ?

रंगो  का त्यौहार है होली ,बुराई पर अच्छाई  की जीत का त्यौहार है होली ,परिवार एवं दोस्तों से मेल मिलाप   का
का त्यौहार है होली ,मिठाइयों से सजी कुछ  खास कुछ खाश है यह थाली  क्यूंकि हम सब के रंगो के जश्न का त्यौहार  है यह होली|   होली के त्यौहार में जितना रंगो का महत्त्व  है उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है  जिसे हम होली खेलने से एक दिन पहले होलिका दहन के रूप में मनाते  है  उसे हम छोटी होली भी कहते है अब ये बात  आती है हम होलिका दहन करते क्यों  है ? तो आइये  जानते है होलिका दहन से जुडी जानकारी  एवं इसके पीछे  की पौराणिक कथा  जानने के लिए यह लेख पूरा पढ़े 
                                                           


                     
होलिका दहन की कथा 
जिस तरह प्रत्येक त्यौहार को  मनाने के पीछे  उसका हर एक कारण  होता है उसी तरह से होलिका दहन के पीछे  भी पौराणिक  कथाओ की   मान्यता दी गयी है | आइये  जानते है  उस होलिका दहन की कथा के बारे में   कहते है की वर्षो पूर्व  एक अत्याचारी राजा   हिरण्यकश्यप  राज करता था  उसने अपने प्रजा को यह आदेश दिया की, उसके प्रदेश में  कोई भी ईश्वर की आराधना या वंदना न करे बल्कि उसे ही अपना आराध्य देव माने   लेकिन  राजा हिरणकश्यपु   का  पुत्र  प्रहलाद  ईश्वर की परम भक्ति करता था | किसी तरीके से यह बात उस   राजा हिरनकशयपू  के कानो तक पता चली की उनका पूत्र अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर ईश्वर को अपना आराध्य देव  मानता  है  | राजा हिरण्कश्यपु  अत्यंत क्रूर एवं निर्दयी था उसने अपने  पुत्र को दंड देने के लिए   युक्ति बनाई |  
राजा की बहन होलिका अग्नि की उपासक थी उसको वरदान प्राप्त  था  कि  जब तक लाल  कपड़े  रखकर   वह अग्नि में प्रवेश करेगी   तब तक उसे अग्नि  नहीं जला सकती |  वह  प्रहलाद  को लेकर अग्नि कुंड पर चली  गयी  अग्नि कुंड में जाते ही   अपने भक्त को संकट में देखकर भगवान विष्णु   ने  प्रहलाद  की रक्षा की  प्रह्लाद के शरीर को आग से बचा लिया  होलिका को उसके घमंड का सबक मिला और आग में न जलने का वरदान होने के बावजूद वह खुदके घमंड के आग में जलकर मर गयी. और उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर  होलिका दहन का त्यौहार मनाते है 
                                           

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