एक कविता जिसे मैंने कक्षा पाँचवी के किताब में पढ़ा था जो कविता मुझे आज भी बहुत ही प्रिय है और यह सभी को प्रेरित भी करती है जिसे कवि मैथिलीशरण जी ने बहुत ही सुन्दर तरीके से रचना की है। इसी कारण से वे राष्ट्रकवि से भी नवाजे गए उनकी कविताएं की काव्यधारा में कुछ ऐसी बाते है कि जनमानस को झकझोरने वाली होती है वे कवि होने के साथ -साथ एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे। जब भी मैं खाली फुरसत से बैठता हूँ तो मैं कविताये जरूर पढ़ता हूं| क्या आप भी कविताएँ पढ़ने में रुचि रखते है ? क्यों की आज इस लेख मैं आपको मैथलीशरण जी की प्रेरणादायक कविता नर हो न निराश करो मन को की चन्द लाइने प्रस्तुत कर रहा हूँ |
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।
प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।
साभार :-कविताकोश
हमें सीख मिलती है :-
हमे जीवन मे बढ़ते रहने के समय आने वाली मुश्किलो से निराश नही होना चाहिए । हमे आशावादी होकर अपने रास्ते पर आगे बढ़ते रहना चाहिए ।
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