कर्ण और अर्जुन में श्रेष्ठ धनुर्धर कौन था जानिये

कर्ण और अर्जुन की श्रेष्ठता सबसे बलशाली कौन ?

                                                                
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दोस्तो आपने लगभग सभी लोगो ने महाभारत की कथाएँ धारावाहिक सभी ने देखी है  और वहाँ धारावाहिक देखने के बाद लगभग सभी लोग  के मन में एक  प्रश्न जरूर  उठता है । और ज्यादातर  एक प्रश्न महत्वपूर्ण होता है कि  कर्ण और अर्जुन  में श्रेष्ठ कौन था । तो आज  इस आर्टिकल में इसी से संबंधित विषय पर आप से चर्चा करूँगा ।





                                                            


                                               दानवीर कर्ण  का  जीवन परिचय 

महाभारत में कर्ण का अहम स्थान है कर्ण  एक महान शूरवीर योद्धा  होने के साथ -साथ वह बहुत बड़े दानवीर भी थे वे धनुर्विद्या  में निपुण होने के साथ  गुरुभक्त और मित्रता  के प्रति त्याग के लिए भी जाने जाते है कर्ण कुंती  के पुत्र के साथ  पांडवो  के ज्येष्ठ कर्ण  थे   में वो सभी गुण  थे  जो एक योद्धा में होने चाहिए | दानवीर  कर्ण  के प्रतिभा को देखकर श्री कृष्णा भी उनके प्रशंसा करने से नहीं चूकते  दानवीर कर्ण  भी  श्री कृष्ण को अपना मित्र मानते थे  उनमे मित्रता की गुण  है  वे दुर्योधन को मित्र मानकर ऐसा वचन देते है  जिसे वे मरते दम तक अ पने  आपको  सुर्योधन को समर्पित कर देते है



                                                                 

                                                         अर्जुन  का जीवन  परिचय 

  महाभारत में अर्जुन का मुख्य किरदार  होता  है |  धनुर्धर अर्जुन देव इंद्र के पुत्र है और उनकी माता कुंती देवी  है |  अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य है  जो कि अर्जुन को  श्रेष्ठ  धनुर्धर बनाना चाहते थे और श्री कृष्णा स्वयं उनके सारथी होते होते है  जो महाभारत के युद्ध में  अर्जुन के  मार्गदर्शक बनते है अर्जुन  और कर्ण  वे दोनों  हो  एक दूसरे के  चिर प्रतिद्वंदी  थे  जिनका युद्ध सदैव विस्मरणीय  है







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श्री कृष्णा जी   ने बताया कर्ण  श्रेष्ठ धनुर्धर कैसे है 

एक दिन कुरुक्षेत्र  के मैदान पर युद्ध के दौरान  जब अर्जुन  कर्ण  के रथ पर  बाण चला  रहे थे तभी  कर्ण  की रथ दस कदम पीछे चल देते थे और जब कर्ण  जवाबी हमले में तीर छोड़ते थे तो अर्जुन का रथ  दो कदम दूर ही  पीछे  खिसकते थे तब श्री कृष्ण जी ने कर्ण  की प्रशंसा  करने लगे  और बोले  वाह -वाह  बहुत  अच्छे  कर्ण  तब अर्जुन  श्री कृष्णा को ओर देखते हुए बोलते है |
हे! माधव  यह क्या है ? आप तो स्वयं देख रहे है  प्रभु , जब मै कर्ण  की रथ  पर बाण  चलाता हूँ  तब कर्ण  की रथ  दस कदम पीछे  खिसकते है|   और जब कर्ण  हमारी रथ पर बाण  चलाता  है ,तो हमारी रथ  कुछ ही  दूर जाता है  | तब भी  आप  कर्ण  की प्रशंसा कर  रहे है|   तभी  उसी समय  माधव (श्री कृष्ण )अर्जुन से  कहते है  हे पार्थ ! तुम कर्ण को  मेरे आँखों से देखो  मुझे   तुम्हारी धनुर्विद्या  पर कोई शक नहीं नि:संदेह तुम श्रेष्ठ धनुर्धर हो  पर कर्ण जैसा  धनुर्धर  भी कोई नहीं और मै कैसे  स्वयं को  प्रशंसा से  रोक लूँ  उस वीर धनुर्धारी की  रथ पर जब तुम बाण चलाते ते थे तब  कर्ण  की रथ दस  कदम पीछे जरूर जाती थी  लेकिन तुम तो स्वयं जानते हो   जिसने तुम्हारे रथ पर विराजमान सर्वशक्तिशाली हनुमान जी  और  मैं सृष्टि  का  रचनाकार  तीनो लोक के भार  के साथ  मौजूद  उसने हमारी रथ को पीछे ढकेल  दिया सोचो !अगर मैं  और बजंगबलि तुम्हारी रथ पर न  होते तो क्या होता ?

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